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Friday, August 22, 2014

प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान २०१४

वर्ष २०१४ का प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान कथाकार अल्पना मिश्र को उनके उपन्यास 'अन्हियारे तलछट में चमका' के लिए दिए जाने की घोषणा की गयी है.२००६ से प्रतिवर्ष दिए जा रहे इस सम्मान का यह ७ वां संस्करण है जिसके निर्णायक मंडल में वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी, कथाकार शिवमूर्ति और डॉ चन्द्रकला त्रिपाठी रहीं.
निर्णायकों के अनुसार यह उपन्यास निम्नमध्यवर्गीय जीवन का महाख्यान है जो स्त्री-लेखन को एक बड़ा विस्तार देता है और स्त्री-संसार की एकायामिता को तोड़ता है.कहन के अनूठे अंदाज़ और भाषा-विकल्पन के गहरे नए रूपों से संमृद्ध यह  हिंदी उपन्यास क्षेत्र में अब तक के प्रचलित  सभी खांचों को तोड़ कर सृजनात्मकता के नए शिखर निर्मित करता है.

Saturday, July 5, 2014

पहला युगवाणी सम्मान कथाकार गुरूदीप खुराना को



किसी भी तरह के हो-हंगामें की बजाय और बिना किसी पूर्व घोषणा के अचानक से कथाकार गुरूदीप खुराना के घर पर पहुंचकर उन्‍हें पहले युगवाणी सम्‍मान से सम्‍मानित करना, देहरदून के साहित्‍य समाज के अनूठे अंदाज ने न सिर्फ सम्‍मानित हो रहे रचनाकार को भौचक एवं भाव विभोर किया है बल्कि अपने प्रिय रचनाकरों को वास्‍तविक रूप से सम्‍मानित करने के अंदाज की एक बानगी भी पेश की है।
2 जुलाई 2014 की शाम जब देहरादून का मौसम मानसूनी हवाओं के असर में था, कथाकार गुरूदीप खुराना के घर पहुंचकर कथाकार सुभाष पंत उन्‍हें पहले युगवाणी सम्‍मान से सम्‍मानित किया। इस अवसर पर युगवाणी के संपादक संजय कोठियाल, पत्रकार जगमोहन रौतेला, कवि राजेश सकलानी, कथाकार अरूण असफल एवं आलोचक हम्‍माद फारूखी भी युगावाणी के अप्रत्‍याशित बुलावे पर वहां मौजूद थे। युगवाणी ने जुलाई 2014 के अंक को 75 वें वर्ष की यात्रा से गुजर रहे गुरूदीप खुराना पर केन्‍द्रीत रखा है, अलबत्‍ता उसकी तैयारी में उन रचनाकारों को सिर्फ इतना ही मालूम रहा है कि युगवाणी अपना जुलाई अंक गुरूदीप खुराना पर केन्‍द्रीत कर रहा है। इस अंक में कथाकर धीरेन्‍द्र अस्‍थाना, तेजिन्‍दर, सुरेश उनियाल, दिनेश चंद्र जोशी, राजेश सकलानी, नवीन नैथानी एवं कई अन्‍य साहित्‍यकारों ने गुरूदीप खुराना के व्‍यक्तित्‍व एवं कृतित्‍व पर अपने अनुभव एवं विचारों को सांझा किया है।
24 सितम्‍बर 1939 को क्‍वेटा, बलूचिस्‍तान में पैदा हुए कथाकार गुरूदीप खुराना देहरादून के निवासी हैं। उनकी मुख्‍य कृतियां ‘जिस जगह मैं खड़ा हूँ (कविता संग्रह), आओ धूप (उपन्‍यास), लहरों के पास (उपन्‍यास), उलटे घर (कथा संग्रह), बागडोर(उपन्‍यास), उजाले अपने अपने (उपन्‍यास), दिन का कटना (कविता संग्रह), एवं एक सपने की भूमिका (कथा संग्रह), अभी तक प्रकाशित हैं। उनका ताजा उपन्‍यास रोशनी में छिपे अंधेरे किताबघर प्रकाशन से वर्ष 2014 में प्रकाशनाधिन है।

देहरादून से निकलने वाली हिन्‍दी मासिक पत्रिका युगवाणी उत्‍तराखण्‍ड की ऐसी लोकप्रिय पत्रिका है जिसका मिजाज हिन्‍दी साहित्‍य के करीबी होने से देहरादून ही नहीं बल्कि कहीं से भी निकलने वाली हिन्‍दी की लोकप्रिय पत्रिकाओं से भिन्‍न है। वर्ष 2013 में आलोचक पुरूषोत्‍तम अग्रवाल को देहरदून आमंत्रित करके पहले आचार्य गोपेश्‍वर कोठियाल स्‍मृति व्‍याख्‍यान का शुभारम्‍भ करने के बाद युगवाणी का यह प्रथम युगवाणी सम्‍मान का आयोजन उसे हिन्‍दी के साहित्‍य समाज के बीच महत्‍वपूर्ण बना रहा है। आजादी के आंदोलन के दौरान शुरू हुए युगवाणी के प्रकाशन का अपना इतिहास है जो उसकी अभी तक की सतत यात्रा में परिलक्षित हुआ है।
गुरूदीप जी का सम्पर्क : 9837533838

Monday, July 12, 2010

जलसा-एक अनूठी किताब

इधर एक बहुत ही महत्वपूर्ण और दिलचस्प किताब आयी है-जलसा.साहित्य और विचार का अनियतकालीन आयोजन.पहले आयोजन को नाम दिया गया है-साल 2010 अधूरी बातें. इसका संपादन असद जैदी ने किया है. यह हिन्दी के अन्यतम कवि और अप्रतिम गद्यकार मंगलेश डबराल को बासठवें साल के लिये समर्पित है।

यह एक तरह से समानधर्मा रचनारत लोगों का विनम्र तोहफ़ा है.इसमें कुल सत्ताइस नक्षत्रों की ज्योतियां झिलमिला रही हैं.यहां कवितायें हैं(
विनोद कुमार शुक्ल,चन्द्रकांत देवताले,लीलाधर जगूड़ी,अशोक वाजपेयी,ग्यानेंद्रपति, वीरेन डंगवाल,नरेंद्र जैन,देवी प्रसाद मिश्र,लाल्टू,कुमार अंबुज,सत्यपाल सहगल,निर्मला गर्ग,अजन्ता देव, ज्योत्सना शर्मा,नीलेश रघुवंशी,पंकज चतुर्वेदी,शिरीष कुमार मौर्य और तरूण भारतीय). कविताओं के अनुवाद हैं( पाई चुइ यी का त्रिनेत्र जोशी द्वारा किया गया अनुवाद और तादेउश रूजेविच का उदय प्रकाश द्वारा किया गया अनुवाद),डायरी है(मनमोहन और शुभा ),रविन्द्र त्रिपाटी और प्रियम अंकित के विमर्श परक आलेख हैं.इन कवियों की कुछ गद्य रचनायें भी हैं(देवी प्रसाद मिश्र की कहानी,अल्पायु में दिवंगत हो गयीं जोत्सना शर्मा का गद्य-सहस्तर का फूल और नीलेश रघुवंशी की टिप्पणियां)जर्मन भाषा सीखते हुए शिव प्रसाद जोशी के सारगर्भित अनुभव हैं और योगेन्द्र आहुजा के मनमौजी गद्य का नायाब नमूना-परे हट, धूप आने दे और अन्य वाक्य.इस किताब की जान है-कृष्ण कल्पित का मंगलेशजी पर लिखा गया संस्मरण परक लेख!

इस किताब के आवरण पर हुसैन की प्रसिद्ध छतरियां हैं.किताब खोलते ही हमरा साक्षात्कार एक अद्भुत चित्र से होता है-इसमें मोहन थपलियाल खासे बुजुर्ग नजर आते हैं;उनकी बगल में खासे युवा जगूडीजी कैमरे को स्मित मुस्कन में तक रहे हैं और तरूण मंगलेश का हाथ सैल्यूट की मुद्रा में है-सूरज के लिये.किताब के पिछले पृष्ठ पर नजीर की कब्र का फोटो अशोक पाण्डॆ के सौजन्य से छापा गया है. इसकी सामग्री पर आगे चर्चा होती रहेगी। फ़िलहाल मनमोहन की डायरी से एक अंश

मनुष्य शरीर की रक्षा उस पुल की तरह भी की जानी चाहिये जिस पर बार बार चलना होत है.यह वो खामोश और जादुई पुल है जो हमें हर बार नई जगह ले जाता है.नई उपत्यकाओं में,नई अधिपत्यिकाओं में,नए शिखरों की ओर..

Thursday, May 1, 2008

आकर हरी घाटी में बस गयी सरकार, लेकिन डर लगता है

अपने स्थापना दिवस 1 मई के अवसर पर देहरादून की नुक्कड नाट्य संस्था दृष्टि ने गांधी पार्क, देहरादून में एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस अवसर पर कविताओं की पास्टर प्रदर्शनी लगायी गयी और दो कवियों, जिनमें दलित धारा के कवि ओम प्रकाश वाल्मीकि एवं युवा कवि राजेश सकलानी के काव्य पाठ का आयेजन किया गया।
दृष्टि, देहरादून की स्थापना 1983 में हुई थी। वर्ष 2008 को दृष्टि ने रजत जयंति वर्ष के रुप में मनाते हुए इस कार्यक्रम का आयोजन किया। पिछले 25 वर्षो में जनपक्षधर संस्कृति के सवालों के साथ स्थानीय स्तर पर दृष्टि ने देहरादून ही नहीं बल्कि समूचे उत्तराखण्ड में अपनी उपस्थिति दर्ज की है। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन की लड़ाई के दौरान उत्तराखण्ड सांस्कृतिक मोर्चे के गठन में दृष्टि की केन्द्रीय भूमिका रही।
आयेजित कार्यक्रम में हिन्दी के वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना जो पिछले दो वर्षो से देहरादून में रह रहे हैं, के साथ-साथ कथाकार विद्यासागर नौटियाल, सुभाष पंत, जितेन ठाकुर, गुरुदीप खुराना, गढ़वाली कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर एवं घूमंतू निरंजन सुयाल, कुसुम भट्ट, कृष्णा खुराना, सीपीआई के उत्तराखण्ड महासचिव समर भंडारी, जगदीश कुकरेती और कई ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता एवं अन्य कविता प्रेमी श्रोता और दर्शक मौजूद थे।