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Monday, November 9, 2009

प्रभाष जोशी के क्रिकेटिया गल्प





प्रभाष जोशी नहीं थे। हम संवेदना के साथियों के बीच वे मौजूद थे। कथाकार अल्पना मिश्र दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित महाश्वेता देवी के उस स्मृतिआलेख को अपने साथ ले आईं थी जिसमें पराड़कर की परम्परा के पत्रकार प्रभाष जोशी का जिक्र था। प्रभाष जोशी से हममें से कोई शायद ही व्यक्तिगत रूप से परिचित हो, अल्पना मिश्र का सोचना देहरादून के साथियों की उस फितरत के कारण रहा होगा जिसमें तमाम रचनात्मक व्यक्तियों के रचनाकर्म से परिचित होने के बावजूद भी व्यक्तिगत परिचय की बहुत सीमित जानकारियों का इतिहास था। अनुमान गलत भी न था। उपस्थित साथियों में कोई भी प्रभाष जोशी से व्यक्तिगत रूप से परिचित न था। उसी आलेख का पाठ करते हुए हम प्रभाष जोशी को याद कर रहे थे। जनसत्ता जो संख्यात्मक रूप में बेशक सीमित प्रतियों वाला अखबार है, अपने साहित्यिक आस्वाद के कारण हममें से हर एक का प्रिय था। प्रभाष जोशी उसी जनसत्ता के सम्पादक थे। रविवारिय संस्करण के हम ज्यादातर पाठक जो किक्रेट के जिक्र से भरे कागद कारे को अपनी थाली में से हड़प लिए गए किसी साहित्यिक आलेख की जगह के रूप में देखते थे, उस वक्त उन्हीं कागद कारे करने वाले प्रभाष जोशी के क्रिकेटिया गल्प के जिक्र के साथ प्रभाष जोशी को याद कर रहे थे। रविवार में प्रकाशित उनके हालिया साक्षात्कार से असहमति के स्वर भी थे तो अभी तीन राज्यों के भीतर हुए चुनाव में मीडिया की भूमिका को लेकर दबंगई से लिखने वाले पत्रकार प्रभाष जोशी के प्रति आगध स्नेह भी बातचीत में था। कथाकार सुभाष पंत, मदन शर्मा, मनमोहन चढडा, वेद आहलूवालिया, स्वाति, महावीर प्रसाद शर्मा  मुख्यरूप से उपस्थितों में थे।


स्वाति, वह युवा रचनाकार जो पहली बार संवेदना की बैठक में उपस्थित हुई, अपनी कविताओं के साथ आई थी। उसने कविताओं का पाठ किया। कथाकार/व्यंग्यकार मदन शर्मा ने अपने ताजा व्यंग्य का पाठ किया और अंत में कथाकार सुभाष पंत के ताजा लिखे जा रहे उपन्यास अंश को सुनना गोष्ठी की उपलब्धता रही।

स्वाति का कविता-पाठ आप यहां क्लिक कर सुन सकते हैं-

Monday, July 20, 2009

महिला समाख्या एवं साहित्य अकादमी के कार्यक्रम


18 एवं 19 जुलाई 2009 देहरादून के हिसाब से साहित्यक, सामाजिक रूप से हलचलों भरे रहे। एक ओर महिला समाख्या, उत्तराखण्ड एवं चेतना आंदोलन के द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित सम्मेलन जिसमे शिक्षा का अधिकार बिल जो कि लोकसभा में पारित होना है पर समझदारी बनाने तथा बिल के जनपक्षीय पहलुओं पर विचार विमर्श किया गया तो वहीं दूसरी ओर साहित्य अकादमी दिल्ली की उस महती योजना का पहला आयोजन- रचना पाठ।
शिक्षा विद्ध अनिल सदगोपाल,


गांधीवादी और जनपक्षीय पहलुओं पर अपनी स्पष्ट राय रखने वाले डा ब्रहमदेव शर्मा, इतिहासविद्ध शेखर पाठक के अलावा नैनीताल समाचार के सम्पादक राजीव लोचन शाह, पी.सी.तिवारी, शमशेर सिंह बिष्ट के साथ-साथ कई अन्य सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलनो में हिस्सेदारी करने वाले कार्यकर्ताओं ने शिक्षा के सवाल पर विचार विमर्श किया। कुछ ऐसे सवाल जो इस दौरान उठे और जिन पर सहमति और असहमति की एक स्थिति बनती है उस बाबत विस्तार से लिखे जाने का मन है, उम्मीद कर सकते है कि जल्द ही उसे लिखा जाएगा।


वहीं दूसरी ओर 19 जुलाई के एक दिवसीय कार्यक्रम में साहित्य अकादमी दिल्ली के द्वारा आयोजित रचना पाठ के चार सत्र एक अनुभव के रूप में दर्ज हुए। दो सत्र कविताओं पर थे जिसमें विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, प्रयाग शुक्ल, गिरधर राठी, लीलाधर जगूड़ी, शेरसिंह बिष्ट, देवसिंह पोखरिया, दिनेश कुमार शुक्ल, शंभु बादल, बुद्धिनाथ मिश्र, माधव कौशिक, हरिश्चंद्र पांडेय, रति सक्सेना, हेमन्त कुकरेती, रमेश प्रजापति, यतीन्द्र मिश्र के साथ-साथ मैंने भी अपनी कविताओं का पाठ किया।

कहानी के सत्रों में विद्यासागर नौटियाल, बटरोही, सुभाष पंत, मंजुला राणा, अल्पना मिश्र, ओम प्रकाश वाल्मिकि एवं जितेन ठाकुर ने अपनी-अपनी कहानियों के पाठ किए।

वे कविताएं जिनका मैंने पाठ किया, उनकी रिकार्डिंग प्रस्तुत है जो कि कार्यक्रम के दौरान नहीं हुई है, अलबत्ता उन्हें अलग से रिकार्ड कर यहां प्रस्तुत किया है।




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