Friday, February 25, 2011



 1964 में काहिरा में जनमी फातिमा नउत (
Fatima Naut) मिस्र की आधुनिक पीढ़ी की लोकप्रिय कवि हैं.पेशे से वे प्रशिक्षित वास्तुकार हैं और साहित्य रचना के साथ साथ अपना पेशेगत काम भी करती हैं.उनकी अपनी कविताओं के संकलन के अलावा समालोचना और विश्व की अन्य भाषाओँ से अनूदित रचनाओं की करीब एक दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं.अंग्रेजी और चीनी के अतिरिक्त कई विदेशी भाषाओँ में उनकी कविताओं के अनुवाद हुए हैं.एक अनियत कालीन साहित्यिक पत्रिका का संपादन भी करती हैं.
जब मैं देवी बनूँगी
                                                         -- फातिमा नउत

मैं उतार डालूंगी दुनिया के फटे पुराने बदरंग कपड़े
झाड़पोंछ करुँगी नक़्शे का
और इतिहास की पांडुलिपियाँ उठा कर फेंक दूँगी कूड़ेदान में
साथ में अक्षांश और देशांतर की रेखाएं
और देशों को बाँटने वाली सीमारेखाएं भी
पर्वत झरने
और सोना,पेट्रोल,जलवायु और बादल..सब कुछ...
इन सबको मैं फिर से न्यायोचित ढंग से वितरित करुँगी
मैं पंखों से बने अपने झाड़न को हौले हौले
फिराउंगी अस्त व्यस्त थके चेहरों के ऊपर
जिससे सफ़ेद,साँवले और पीले पड़े हुए चेहरे
पिघल कर खुबानी के रंग के निखर जाएँ.
मैं देसी बोलियों से बीन बीन कर
एकत्र करुँगी भाषाएँ और कहावतें
और इनको अपनी कटोरी में रख के पिघला दूँगी
जिस से निर्मित कर सकूँ श्वेत धवल एक अदद शब्दकोश
प्रेत छायाओं और क्रोधपूर्ण शब्दों से जो होगा पूर्णतया मुक्त.

अपने राज सिंहासन पर बैठने से पहले
मैं हिलाडुला कर ठीक करुँगी सूरज की दिशा
साथ साथ भूमध्य रेखा को भी खिसकाउंगी
वर्षा तंत्र को भी संगत और दुरुस्त करुँगी.
ये सब कर के जब मैं काटूँगी फीता
तो मेरे तमाम भक्त करतल ध्वनि से स्वागत करेंगे
स्पार्टकस, गोर्की, गुएवारा भी...

ख़ुशी से झूमते हुए मैं हकलाती हुई घोषणा करुँगी :
अब से सृष्टि के वास्तुशिल्प का काम मेरा है
तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो इस से पहले
मुझे पलभर को पीछे मुड़ कर देखना होगा धरती पर
और दुनिया को वापिस उस ढब से ही सजाना धजाना होगा
जैसे हुआ करती थी कभी ये पहले.

यह अनुवाद मूलतः अरबी भाषा में लिखी इस कविता के अंग्रेजी अनुवाद: कीस निजलांद, पर आधारित है
प्रस्तुति:  यादवेन्द्र  

3 comments:

Neeraj said...

अनुवाद बढ़िया है , मूल कविता पढ़ी नहीं , पढ़ भी नहीं सकता परन्तु अनुवाद स्वतंत्र रूप से भी लाजवाब है ...

अनूप शुक्ल said...

बहुत प्यारी कविता। पढ़वाने के लिये शुक्रिया।

Rahul Singh said...

यानि तीसरे विश्‍व युद्ध के बाद भी यही की यही रहेगी दुनिया.