Monday, December 8, 2008

शहंशाही में है बालकनी नाम का ठेका

देहरादून की लेखक बिरादरी के, अपने शहर से बाहर, कुछ ही सामूहिक दोस्त हैं। कथाकर योगेन्द्र आहूजा उनमें से सबसे पहले याद किये जाने वालों में रहे हैं। बेशक योगेन्द्र कुछ ही वर्षों के लिए देहरादून आकर रहे पर सचमुच के देहरादूनिये हो गये। यह सच है कि पहल में प्रकाशित उनकी कहानी सिनेमा-सिनेमा को पढ़कर इस शहर केलिखने पढ़ने वाली बिरादरी के लोग उन्हें देहरादून में आने से पहले से ही जानने लगे थे। वे भी देहरादून को वैसे हीजानते रहे होंगे- उस वक्त भी, वरना सीधे टिप-टाप क्यों पहुंचते भला। ब्लाग में अवधेश जी की लघु कथाओं कोपढ़ने के बाद हमारे प्रिय मित्र ने अवधेश जी को याद किया है। उनका यह पत्र यहां प्रकाशित है। पत्र रोमन में था, उसे देवनागरी में हमारे द्वारा किया गया है।
अवधेश जी कविताएं कुछ समय पहले पोस्ट की गयीं थीं। पढने के लिए यहां जाएं

प्रिय विजय

बहुत समय के बाद अवधेश जी की रचनाएं देखने का अवसर मिला। इन्हें इतने समय के बाद दुबारा पढ़ कर शिद्दत से एहसास हुआ कि उनकी असमय मृत्यु हम सबके लिए कितनी बड़ी क्षति थी।

उनके साथ बिताये दिन फिर स्मृति में कौंध गये। शहंशाही में बालकनी नाम के ठेके पर उनके साथ बिताये पल विशेष रूप से याद आये। लगातार बरसात, तेज सर्दी, हवा में हल्की-सी धुंध और समकालीन कविता और कवियों के बारे में उनकी अनवरत और बेशुमार बातें।

वे दिन ना जाने कहां चले गये और अब कभी लौट कर नहीं आयेंगे।

आज इतने समय के बाद में उन दिनों को भावसिक्ता होकर याद कर रहा हूं। लेकिन क्या उन दिनों और पलों को मैंने पूरी तरह डूब कर और शिद्दत के साथ जिया था ? नहीं।

शायद यह इजराइल के कवि इमोस ओज का या पोलैण्ड की कवियत्री विस्सवा शिम्बोरस्का का कथन है कि चूंकि सब कुछ क्षणभंगुर है और एक दिन सब कुछ समाप्त हो जाने वाला है, हमें हर दिन का उत्सव मनाना चाहिए।

अवधेश जी को हिन्दी कविता में वह जगह और पहचान नहीं मिली जिसके वे हकदार थे, हालांकि विष्णु खरे जैसे विद्धान आलोचक उनकी कविताओं के प्रशंसक थे। उन्होंने जिप्सी लड़की पर एक समीक्षा भी लिखी थी जो उनकी किताब "आलोचना की पहली किताब" में संकलित है।

आभारी होऊंगा यदि उनकी कुछ प्रतिनिधि कविताएं (फोटो के साथ हों तो और भी बेहतर है) भी ब्लोग पर उपलब्ध करा सकें। और हां उनके कुछ गीत भी, विशेषकर धुंए में शहर है या शहर में धुंआ

वे बहुत अच्छे पेंटर और स्क्रेचर भी थे। कृप्या उनकी कुछ पेंटिग और स्केच भी उपलब्ध करवायें। संभव हो तो नवीन कुमार नैथानी जी का उन पर लिखा संस्मरण भी।


आपका


योगेन्द्र आहूजा

No comments: