Sunday, May 18, 2008

भगत सिंह : सौ बरस के बूढ़े के रुप में याद किये जाने के विरुद्ध

("ब्रिटिश हुकूमत के लिए मरा हुआ भगत सिंह जीवित भगत सिंह से ज्यादा खतरनाक होगा। मुझे फांसी हो जाने के बाद मेरे क्रान्तिकारी विचारों की सुगन्ध हमारे इस मनोहर देश के वातावरण में व्याप्त हो जायेगी। वह नौजवानों को मदहोश करेगी और वे क्रान्ति के लिए पागल हो उठेगें। नौजवानों का यह पागलपन ही ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को विनाश के कगार पर पहुंचा देगा। यह मेरा दृढ़ विश्वास है। मैं बेसब्री के साथ उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब मुझे इस देश के लिए मेरी सेवाओं और जनता के लिए मेरे प्रेम का सर्वोच्च पुरस्कार मिलेगा।"
भगत सिंह का यह कथन उनके साथी शिव वर्मा के हवाले से है। परिकल्पना प्रकाशन से प्रकाशित भगत सिंह की जेल डायरी में शिव वर्मा जी ने अपने आलेख में उर्द्धत किया है।
पहल88 में प्रकाशित कवि राजेन्द्र कुमार की कविता को पढ़ते हुए जेल डायरी को पलटने का मन हो गया। यह कविता की खूबी ही है कि उसने भगत सिंह को जानने के लिए मुझे प्रेरित किया। पहल से साभार कवि राजेन्द्र कुमार की कविता आपके लिए यहां पुन: प्रस्तुत है।


मैं फिर कहता हूं
फांसी के तख्ते पर चढ़ाये जाने के पचहतर बरस बाद भी
'क्रान्ति की तलवार की धार विचारों की सान पर तेज होती है।"

वह बम
जो मैंने असेंबली में फेंका था
उसका धमाका सुनने वालों में तो अब शायद ही कोई बचा हो
लेकिन वह सिर्फ बम नहीं, एक विचार था
और, विचार सिर्फ सुने जाने के लिए नहीं होते

माना कि यह मेरे
जनम का सौ वां बरस है
लेकिन मेरे प्यारों,
मुझे सिर्फ सौ बरस के बूढ़ों में मत ढूंढ़ों

वे तेईस बरस कुछ महीने
जो मैंने एक विचार बनने की प्रक्रिया में जिये
वे इन सौ बरसों में कहीं खो गये
खोज सको तो खोजो

वे तेईस बरस
आज भी मिल जाएं कहीं, किसी हालत में
किन्हीं नौजवानों में
तो उन्हें मेरा सलाम कहना
और उसका साथ देना ---

और अपनी उम्र पर गर्व करने वाले बूढ़ों से कहना
अपने बुढ़ापे का गौरव उन पर न्यौछावर कर दें

राजेन्द्र कुमार, फोन : 0532 - 2466529

1 comment:

डॉ .अनुराग said...

वाकई इन शब्दों को चूम लेने का मन होता है ....वे लोग कौन सी माटी के बने थे .....